Monday, February 7, 2011

वर दे वीणावादिनी वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे !प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
        भारत में भर दे !

काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
        जगमग जग कर दे !

नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
        नव पर, नव स्वर दे !

वर दे, वीणावादिनि वर दे।
- सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

(सरस्वती पूजा के अवसर पर सभी छात्रों, शिक्षकों और निदेशकों को VCSM की ओर से हार्दिक बधाई)

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